कविता शीर्षक – वन्देमातरम
वन्देमातरम मातु भारती तुझसे अपना नाता है
देती हमको मान निराला ऐसी भाग्यविधाता है।
माँ तेरी मिट्टी ने जाने कितनों कितनों को तारा है
सबसे ऊपर हैं सेनानी जिननें तन मन वारा है ।
एक सिख एक ही हिन्दू एक ही मुस्लिम होते हैं ,
और सभी मिलकर के मणि की प्यारी माल पिरोते हैं।
क्रिश्चियन कितने भोलेभाले और पारसी न्यारे हैं
और सबही ने मिलकर अपने तन मन तुझपर वारे हैं।
वन्देमातरम मैया मैं तो तुझपर बलि बलि जावाँ रे
जैसा भी तू आज्ञा देती खुश हो उसे निभावाँ रे ।