कविता शीर्षक – “प्रेम का मकड़ जाल”
सुंदर सुनहरी चिड़िया, चमक उठी आंखे लाल,
कितनी सुनहरी है बिछा देता हूं, अपना प्रेम मकड़ जाल।
सुनो, सुनहरी चिड़िया हु अकेला, क्या बनोगी मेरी सहेली,
देख सुनहरी चिड़िया उसको,नही–नही मैं हूं ठीक अकेली।
नाकाम होता देख तिलमिला गया, उसके अंदर का शैतान,
तुम भी अकेली, मैं भी अकेला, चलो बना ले एक आयतन।
चिड़िया के मन ने सोचा, है कितना मासूम तन्हा ये वीरान,
सुनो तुम हो अंजान, कैसे यकी कर मैं दे दूं अपना मान।
ये सुन मन ही मन नाच उठा, उसके अंदर का हैवान हा हा हा,
मैं बनूंगा तुम्हारा हर कदम का साथी, ये है तुमसे वायदा मेरा।
ये सुन चिड़िया हुई प्रसन्न, उड़ने लगी उसके मन में नई उमंग,
चलने लगे उनके बीच प्यार भरे, मन प्रसन्न लुभावने प्रेमबाण।
आहा फस गई चिड़िया, क्या लेलू इसकी प्रेम परीक्षा?
फेंका अपनी झूठी रोती बिलखती, भावनाओ का प्रेमजाल।
झूठा दर्द देख चिड़िया, तड़पने फड़फड़ाने लगी इस कदर,
उठा कर अपना सामान पकड़ ली, उस शैतान की डगर।
माँ ने अपनी ने ममता की, पिता ने कसम दी अपनी गोदी की,
खून के रिश्तों ने बहुत कोशिश की उसे रोक बचाने की।
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चिड़िया रूठ कर बोली ना रोको मुझे बालिग हो गई हूं मैं,
झूठा प्यार दिखा रोका मुझे फंसा दूंगी मैं कानून में तुम्हें।
चिड़िया फुर्र हो खुशी-खुशी जा फंसी उस मकड़जाल में,
जहां शैतान पलके बिछा बैठा था उसके आने इंतजार में।
चिड़िया लिपट बोली शैतान से, चलो करें हम अपना मिलन,
शैतान ने पकड़ खींच जकड़ा उसे, हां प्रिय चलो कोपभवन ।
तोड़ पंख कर अपनी मन मर्जी शैतान ने छोड़ा उसे उसी घड़ी,
वो तड़पती बिलखती रही वही जमीन पर फड़फड़ाती रही।
कुछ दिन बाद हिम्मत कर चिड़िया जा भिड़ी उस हैवान से,
हैवान था बेदिल बेदर्द, उसे ना आया रास उसका ये आकार।
हुई तू–तू मैं–मैं बहुत हुई तकरार, उन दोनों के दरमियान,
उन दोनो के बीच,बड़ती गई लड़ाई, तकरार और दूरियां।
एक दिन उस हैवान ने दिखा दिया अपना असली रूपरंग,
पकड़ उस चिड़िया को उसने टुकड़ों में कर दिया भिन्न–भिन्न।
चिड़िया बिचारी कुछ न कर पाई, ना रो पाई ना चीख पाई,
उस हैवान को देख कर बस, उसने अपनी जान गवाई ।
क्या मिला उस चिड़िया को, और क्या मिला उस शैतान को,
वो शैतान भी न रह पाया चैन से, वो सूली चढ़ मिला मौत से।
उन दोनो का कुछ न गया इसमें गया तो उन माँ बाप का,
कसूर क्या था उनका बस पीछे रह गया एक सवाल था।
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