कविता शीर्षक – नैना बैरी….
नैना बैरी रे …..
नित दिन ढूँढे अपने श्याम को।
रास ना आवे मोहे,
जग के सुहावने मंजर रे।
घन-घन बादल गरजे,
धक-धक मोरा जीया धड़के रे।
कहाँ ढूँढे तोहे मोरे श्याम रे !
बरखा बाहारों में, या गोधूलि बेला में।
सारे नीरस से तकते हैं मोहे रे ,
ना साँवली रंग झलके, ना मोहिनी रूप दिखे।
नैना बैरी रे .....
नित दिन ढूँढे अपने श्याम को।
क्यों तोहे …..
याद ना आवे मोरी बतिया रे।
क्यों तू देख ना पावे,
मोरी अश्कों की धार रे....।
श्याम ना आवेगा ,
अब तू मान जा मोरे जियरा रे….!!