Raghav Writing Solutions Poetry Raghav Writing Solutions : पढ़िए…. प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार “श्री गोपालदास ‘नीरज'” द्वारा रचित कविता “मुस्कुराकर चल मुसाफिर” 2023

Raghav Writing Solutions : पढ़िए…. प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार “श्री गोपालदास ‘नीरज'” द्वारा रचित कविता “मुस्कुराकर चल मुसाफिर” 2023


मुस्कुराकर चल मुसाफिर Raghav Writing Solutions

 Raghav Writing Solutions : कविता शीर्षक – मुस्कुराकर चल मुसाफिर

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर!

Raghav Writing Solutions : Eminent Developer

वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?

हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?

वह प्रगति भी क्या जिसे कुछ रंगिनी कलियाँ तितलियाँ,

मुस्कुराकर गुनगुनाकर ध्येय-पथ, मंज़िल भुला दें?

ज़िन्दगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है,

आँधियों में, बिजलियों में जो रहे अविचल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

 जानता जब तू कि कुछ भी हो तुझे ब़ढ़ना पड़ेगा,

आँधियों से ही न खुद से भी तुझे लड़ना पड़ेगा,

सामने जब तक पड़ा कर्र्तव्य-पथ तब तक मनुज ओ!

मौत भी आए अगर तो मौत से भिड़ना पड़ेगा,

है अधिक अच्छा यही फिर ग्रंथ पर चल मुस्कुराता,

मुस्कुराती जाए जिससे ज़िन्दगी असफल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर।

 याद रख जो आँधियों के सामने भी मुस्कुराते,

वे समय के पंथ पर पदचिह्न अपने छोड़ जाते,

चिह्न वे जिनको न धो सकते प्रलय-तूफ़ान घन भी,

मूक रह कर जो सदा भूले हुओं को पथ बताते,

किन्तु जो कुछ मुश्किलें ही देख पीछे लौट पड़ते,

ज़िन्दगी उनकी उन्हें भी भार ही केवल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

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 कंटकित यह पंथ भी हो जायगा आसान क्षण में,

पाँव की पीड़ा क्षणिक यदि तू करे अनुभव न मन में,

सृष्टि सुख-दुख क्या हृदय की भावना के रूप हैं दो,

भावना की ही प्रतिध्वनि गूँजती भू, दिशि, गगन में,

एक ऊपर भावना से भी मगर है शक्ति कोई,

भावना भी सामने जिसके विवश व्याकुल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

 देख सर पर ही गरजते हैं प्रलय के काल-बादल,

व्याल बन फुफारता है सृष्टि का हरिताभ अंचल,

कंटकों ने छेदकर है कर दिया जर्जर सकल तन,

किन्तु फिर भी डाल पर मुसका रहा वह फूल प्रतिफल,

एक तू है देखकर कुछ शूल ही पथ पर अभी से,

है लुटा बैठा हृदय का धैर्य, साहस बल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

गोपालदास ‘नीरज’

अस्वीकृति :- उपरोक्त रचना प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार “श्री गोपालदास ‘नीरज'”  द्वारा लिखित है, जिसके लिए वह पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। किसी भी प्रकार की साहित्यिक चोरी के लिए संस्था एवं पदाधिकारी का कोई दोष नहीं हैं। हमारा प्रिय पाठकों से अनुरोध है कि कृप्या हमें कमेंट करके अवश्य बताएं कि आपको यह रचना कैसी लगी।

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