Raghav Writing Solutions : कहानी शीर्षक – हमसफर
“अरे भैया ये किताब तो उठाओ…. ये तो… फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी की बहुत रेयर बुक है। एन इंट्रोडक्शन टू फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी… ये किसने कबाड़ में बेच दी??…. भैया ये कितने में दोगे??” शिवानी ने कबाड़ी की दुकान के आगे से निकलते हुए अचानक एक किताब के मुख्यपृष्ठ पर नज़र पड़ते ही उससे पूछा।
“ले लो मैडम… ये सौ रुपए में मिलेगी।” कबाड़ वाला उसका बड़बड़ाना सुन चुका था।
शिवानी ने पैसे देकर वो किताब उठाई तो इसके नीचे एक बहुत खूबसूरत से कवर पेज वाली डायरी पड़ी थी। उसको खोल कर देखा तो वो किसी लड़की की पर्सनल डायरी थी, जो कबाड़ में बेच दी गई थी। उत्सुकतावश उसने वो डायरी भी कम दाम में खरीद ली।
घर जाकर सारे काम निपटा कर शिवानी ने पहले तो अपनी खरीदी हुई उस किताब का रेनोवेशन किया। फिर उसे बुक शेल्फ़ में करीने से सजा कर एक कप कॉफी के साथ वो डायरी पढ़नी शुरू की।
शुरू के दो चार पन्नों पर बहुत ही खूबसूरत लिखावट में इंग्लिश कोटेशंस लिखी हुई थीं। देखकर ही लगा किसी सुलझे हुए इंसान की ज़िन्दगी सिमटी है इन पन्नों में। उसने उत्सुकतावश आगे के पेज पलटने शुरू किए। कुछ दो पृष्ठों बाद ही वो मिला, जो शिवानी खोज रही थी।
प्रिय डायरी,
12/07/2000
आज बहुत दिनों बाद तुमको कुछ बता रही हूं। इन बीते दस दिनों में बहुत कुछ बदल गया है।
तुम तो जानती ही हो कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसके कारण मैंने कॉलेज के बाद स्कूल और बच्चे हुए टाइम में ट्यूशन शुरू करा हुआ है। यहां जिन दो बच्चों को घर जाकर पढ़ाती हूं, उनकी बुआ ने भी उसी दिन मुझसे कुछ ऐसी ही बात कही…. उन्होंने मुझसे बच्चों की नई मां बनने को कहा। ऐसा लगा जैसे किसी ने पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली हो।
मैं…. भला कैसे…. अभी मेरी उम्र ही क्या है?? और अगर शादी करनी ही होगी तो क्या दो बच्चों के बाप से करूंगी?? उफ्फ…. दिमाग खराब हो गया मेरा…. उनकी बुआ को कोई जवाब दिए बिना उसी समय मैं वहां से घर आ गई।
घर आई, तो यहां भी मौसी एक रिश्ता लिए बैठी थीं। मौसी को नमस्ते कहकर मैं चाय बनाने अंदर गई तो इस रिश्ते की बात पता चली। लड़का अच्छा कमाता था, लेकिन उम्र में लगभग मुझसे दस साल बड़ा था… और संयोग से ये भी दो बच्चों का बाप था। लड़के के घर वालों की कोई डिमांड नहीं थी। बस उनको बच्चों के लिए एक मां चाहिए थी।
मौसी के जाने के बाद मां ने मुझे इस बारे में बताया। वो चाहती थीं कि मैं हां कर दूं। बदले में लड़के के परिवार से कुछ रकम भी मिलती…
मां बहुत दुखी थीं।अपनी बेटी को एक विधुर से शादी के लिए तैयार करना पड़ रहा था…. दुखी तो मैं भी थी… कितने सपने होते हैं एक लड़की के, अपनी शादी को लेकर… कितने अरमान होते हैं… लेकिन मां को देखकर समझ आया कि मेरे सपने टूटने का दर्द मुझसे कहीं ज्यादा उनको हो रहा है…
मेरी शादी के बाद छोटे कुणाल को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी तो थी मां पर। पर अगर मैं चली जाऊंगी, तो मां को सहारा कौन देगा…
नहीं… मुझे बहुत कुछ सोचना है इस बारे में…
अगले दिन से मैंने वो बुआ – बच्चों वाला ट्यूशन छोड़ दिया। बाकी चार बच्चों को एक कॉलोनी में पढ़ाने के लिए पहले जैसे ही जाती हूं। अब रोज़ मैं और मां साथ तो बैठते हैं, पर मां के चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी रहने लगी है… शायद वो उस शादी को लेकर अभी भी पेशोपेश में हैं… समझ तो मैं भी नहीं पा रही कि क्या करूं….
मेरी प्यारी डायरी…. तुम ही कुछ बताओ ना…
चलती हूं … कुनाल को पढ़ाना है…
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प्रिय डायरी,
16/07/2000
आज मैंने मां को उस रिश्ते के लिए हां कह दिया।
मुझसे मां कि ये उदासी देखी नहीं जाती। मेरी चिंता में वो जैसे अंदर ही अंदर घुली जा रही है.. दस दिनों से ऊपर हो गया, उनके चेहरे पर एक मुस्कान नहीं आई… उनको चुप चुप देखकर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।
पता है, जब मैंने हां बोला उस शादी को, तो मां मुझे गले लगाकर रो पड़ीं। रोते रोते बस यही कह रही थीं,” बच्ची मुझे माफ़ कर दो… मैं तुम्हारे लिए अच्छा घर नहीं ढूंढ़ पाई..
हर लड़की की तरह तेरे भी कुछ अरमान होंगे.. कुछ सपने होंगे… पर इन सपनों की कीमत बहुत ज्यादा है बेटी…. और मेरी इतनी हैसियत नहीं कि मैं इन सपनों की ऊंची कीमतें पूरी कर सकूं.. मुझे माफ़ कर दो बेटा…” कहकर वो आज बहुत रोई… आज पापा की कमी बहुत महसूस हुई। अगर वो होते , तो आज ना ही मां इतनी मजबूर होती , ना ही मैं इतनी बेबस..
लेकिन.. शायद किस्मत में यही लिखा है….
देखते हैं डायरी…
किस्मत हमें और क्या क्या दिखाती है..
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प्रिय डायरी,
30/07/2000
आज एक अजीब सी खलबली मची हुई है मन में। मौसी फिर अाई थीं। लड़के की फोटो लेकर… मां ने देखा, पर मैंने देखने से मना कर दिया था। मां फोटो देखकर संतुष्ट थीं, कि लड़का बड़ा नहीं लग रहा देखने से।
मां और मौसी ने सब बातें आपस में तय कर लीं हैं। कल लड़के वाले आएंगे घर…
मुझे बहुत घबराहट हो रही है….
हे प्रभु… सब सम्हाल लेना…
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प्रिय डायरी,
31/07/2000
समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखूं…. कैसे लिखूं… आज वो लोग आए थे घर…
मौसी सुबह ही घर आ गई थीं। कुछ मेवे मिठाई भी के अाई थीं साथ। दोपहर बाद उन लोगों को आना था। तो घर पर नाश्ते का कुछ प्रबंध किया गया। कुछ पैक्ड सामान तो मौसी भी ले आई थीं।
शाम के चार बजे वो लोग घर आए। लड़का नहीं आया था। उनकी माता जी अाई थीं। कुछ देर की बातचीत के बाद मुझे बुलाया गया।
माता जी ने मुझसे बस इतना कहा, “मुझे अपने बेटे के लिए बहू नहीं, बच्चों के लिए एक मां चाहिए… अगर तुम इसके लिए तैयार हो तो ही हां करना… कोई ज़बरदस्ती नहीं है.. मैं खुद एक औरत हूं, तो तुम्हारे मन में उठ रहे सवालों को समझ सकती हूं… तुम जो भी पूछना चाहो पूछ सकती हो।”
उनकी बात से मुझे कुछ सहारा मिला… मैंने मां को देखा तो वो मुझे डबडबाई आंखों से देख रही थी। मैंने माता जी से कहा,” आपके घर में तो एक मां आ जाएगी, लेकिन इस घर से एक सहारा चला जाएगा।
मैं शादी के बाद भी अपना स्कूल और ट्यूशन करते रहना चाहती हूं, जिससे मेरी मां को कम से कम तब तक सहारा दे सकूं जब तक कुनाल अपने पैरों पर ना खड़ा हो जाए। क्या आप मुझे इसकी इजाज़त देंगी??”
माता जी ने मुझे पास बुला कर मेरे सर पर बहुत प्यार से हाथ फेरा….. और मेरे हाथ में एक चांदी का सिक्का देकर कहा.,” हां कोमल.. ये लो शगुन….. मैं तुझे जल्दी ही अपने घर ले जाने के लिए आऊंगी।”
सब खुश थे। कहीं ना कहीं मुझे भी तसल्ली थी कि जैसा मैं चाह रही थी वैसा ही हो रहा…
ठीक ही है ना डायरी… उन बच्चों को मां मिल जाएगी… मैं बाद में भी मां का साथ से पाऊंगी.. कुनाल अच्छे से पढ़ लेगा… यही तो चाहिए सबको। . और मुझे भी…
आज बहुत दिनों बाद मन थोड़ा शांत है। अब सोऊंगी मैं। कल बात करती हूं तुमसे…
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इसके बाद अगस्त के पन्ने खाली मिले। शिवानी ने बड़ी ही बेसब्री से आगे के पन्ने पलटते शुरू किए। सितंबर के एक पन्ने पर फिर से कुछ मिला…
प्रिय डायरी,
10/09/2000
बहुत दिन हुए ना तुमको भी…. मुझे भी बहुत खाली खाली सा लगा इन दिनों… पर क्या करती…. मौसी मुझे अपने साथ ले गई थीं .. मां ने मेरी शादी की कोई मन्नत मांगी थी विंध्याचल माता से… पर मां अपने सिलाई वाले काम से फुर्सत नहीं पा रही थीं। तो मुझे ही उनकी तरफ से मौसी के साथ मन्नत पूरी करने जाना पड़ा।
वहां, मौसी बीमार पड़ गई। उनकी देखभाल के उनकी बेटी भी वहां नहीं थी। ससुराल वालों ने उसे भेजा नहीं, तो मैं उनके साथ ही रुक गई। कल ही वापस आती हूं मैं… लगभग बीस दिनों बाद…
क्या शादी के बाद मां के पास आने के लिए मुझे हर बार ससुराल वालों से पूछना पड़ेगा??? अगर वो मना कर देंगे तो क्या मैं भी सोमी दीदी की तरह घर नहीं आ पाएंगी???
हे प्रभु… प्लीज़… ऐसा मत होने देना… मेरा मन बहुत घबरा रहा है अब…
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बीच के कुछ एक दो पन्ने पर कोमल ने अपने मन को जैसे खोल कर रख दिया था… उसका डर, इसकी ख्वाहिशें, उसके सपने सब कुछ थे उसमें…. कुछ पन्ने आगे फिर उसने अपनी ज़िन्दगी के नए अध्याय के बारे में लिखा था।
प्रिय डायरी,
22/09/2000
कल मेरी सगाई है। मन बहुत घबरा रहा है। पता नहीं क्या होगा आगे…
बस भगवान सब कुछ सही करना…..
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आगे फिर ये डायरी कुछ पन्नों तक कोरी ही थी। शिवानी डायरी पढ़ते पढ़ते अब सच में कोमल की ज़िन्दगी से जैसे जुड़ सी गई थी। कोमल की फीलिंग्स को पढ़ते हुए वो खुद को उसकी जगह देखने लगी थी। उसको आगे जानने की उत्सुकता हो रही थी कि कोमल की शादी का क्या हुआ?? क्या कोमल की अपने घर को साथ लेकर चलने की मंशा पूरी हुई होगी??
यही सब सोचते हुए वो डायरी के आखिरी पन्नों में पहुंच गई। डायरी में साल ख़तम हो रहा था, और शिवानी का सब्र भी…
प्रिय डायरी,
25/11/2000
आज दस दिन मैं वापस घर आई हूं…. अपनी ससुराल से…. हां डायरी…. मेरी शादी हो गई…. अचानक ही…..
सगाई के बाद मां की तबीयत एक रात अचानक खराब हो गई। आनन फानन में उनको पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया। उनको दिल का दौरा पड़ा था।
मैं बहुत खबरा गई थी। उनकी हालत देखकर मुझे रोना आ रहा था, लेकिन भाई को भी सम्हालना था और मां को भी….
आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं सकती…. मैंने मौसी को भी फोन कर दिया था।
डॉक्टर ने बताया मां के पास समय बहुत कम है,… उनके दिल की स्थिति बहुत खराब थीं। कुछ घंटों बाद जब उनको होश आया, तो उनकी बस एक ही इच्छा थी, मेरी शादी देखने की…..
मेरे मना करने पर मां ने अपनी कसम देकर मुझे चुप करा दिया, और उसी समय लड़के की माता जी को फोन करवाया।
मां की हालत के बारे में जानकर माता जी ने सुबोध जी को तुरंत आने को कहा… सुबोध जी…. मेरे पति…. आज मैंने भी उनका नाम पहली बार जाना था।
मां के सामने ही उन्होंने मेरी मांग भरी और मंगलसूत्र पहना दिया। माता जी ने मां को तसल्ली दी,” बहन जी आप निश्चिंत रहिए .. आपकी कोमल अब हमारी है। उसकी पूरी जिम्मेदारी हमारी है अब से। बस आप ठीक हो जाइए जल्दी से।”
मां तो जैसे बस यही सुनना चाहती थी उनसे… माता जी की बाते सुनकर उनके होंठों पर एक धीमी से मुस्कुराहट अाई, और फिर वो मुस्कुराते हुए, एक संतुष्टि के साथ हम सबको छोड़कर चली गईं।
मेरी सखी…. मेरी डायरी….. आज मैं अपने आंसू रोक नहीं पा रही हूं…. मेरी मां नहीं रही अब….
मां का सब क्रिया कर्म, कुनाल के हाथों सुबोध जी ने ही करवाया। मां के जाने के बाद कुनाल का एडमिशन मिड टर्म में ही एक अच्छे स्कूल में कराया। और उसको हॉस्टल भेज दिया पढ़ने के लिए।
माता जी ने मौसी से कहकर कुनाल के जाने से पहले कुछ करीबी रिश्तेदारों को बुलाकर एक सादे से फंक्शन में हमारी शादी करा दी। और मैं अपनी मां की यादें और सीख दिल में लिए ससुराल आ गई।
आज मैं पहली विदाई पर घर आई हूं… मां के पास… मां से मैंने सब बताया है… अब तुमको भी बता रही हूं।
सुबोध जी मुझसे दस साल बड़े हैं… दो बेटियों के पिता है.. और जो सबसे बड़ी बात है, वो ये है… कि ये वही बच्चे हैं, जिनकी बुआ ने मुझे उनकी मां बनने के लिए कहा था। पहले भी मैं सिर्फ उनकी बुआ से ही मिली थी। बच्चों के पिता सुबोध जी से कभी आमना सामना नहीं हुआ था, इसलिए उनकी कोई पहचान नहीं थी।
दादी तब गांव में रहती थी, और बुआ से सुबोध जी के लिए किसी अच्छे रिश्ते को देखने की बात की थी। मेरे मना करने के बाद माता जी ने अपने चुने हुए रिश्तों को देखना शुरू किया था, और शायद मेरी किस्मत इन्हीं से जुड़ी थी, जो आखिर में मैं ही उन बच्चों की
मां बनी….
उम्र का बहुत बड़ा फासला है हमारे बीच…. लेकिन वो बहुत समझदार हैं… साथ ही माता जी और जीजी भी… बच्चे पहले से ही मुझसे हिले मिले हुए हैं…. अब तो मुझे छोटी मां कहकर बुलाते हैं, सच कहूं… बड़ा सुकून सा मिलता है मां शब्द सुनकर…
सुबोध जी ने कल ही मुझसे बात की… मेरी पढ़ाई के बारे में पूछा और मुझे अपने सभी एजुकेशनल सर्टिफिकेट्स और मार्कशीट्स लाने को कहा है …मुझे आगे की पढ़ाई पूरी करनी है और एक प्रोफेशनल डिग्री लेकर अपने कैरियर को भी आगे बढ़ाना है…
मां भी यही चाहती थीं, अब शायद मां की ये इच्छा पूरी हो जाएगी।
मेरी प्यारी डायरी… मैं आज आखिरी बार तुमसे बात कर रही हूं… क्योंंकि अब शायद हम सबकी ज़िन्दगी में भगवान ने कोई ऐसा भेज दिया है, जो एक दोस्त की तरह हमेशा हमारे साथ खड़ा रहेगा….
मेरी डायरी… तुमने मेरा हमेशा बहुत साथ दिया है… मेरे हर गम की, हर सुख दुख की तुम साझीदार बनी हो… कितने ही आंसुओं को, कितने टूटे हुए सपनों को, तुमने अपने दामन में समेटा है… तुमसे बातें करते करते मैंने बहुत से दोराहों को आसानी से पार किया है…
तुम हमेशा मेरे पास रहोगी, लेकिन अब तुम सिर्फ खुशियां ही देखोगी हर तरफ…
तुम्हारी कोमल…
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इसके बाद डायरी में कुछ नहीं लिखा था। ये डायरी आज से बीस साल पहले की थी।जो शायद कोमल के ही घर से किसी ने यहां तक पहुंचा दी थी।
शिवानी ने डायरी बंद की और मन ही मन कोमल और सुबोध के बारे में सोचने लगी। तभी उसे याद आया, कि उसकी एंथ्रोपोलॉजी की प्रोफ़ेसर का नाम भी तो कोमल ही है… और उनके पति का नाम सुबोध सहाय… और दोनों की उम्र में फासला भी बहुत है.. यूनिवर्सिटी के यूथ फेस्ट में अपने दोनो बच्चों और पति के साथ कोमल मैम अाई थीं,
तभी सबने उनके परिवार को देखा था… और उम्र के इतने अंतर पर कुछ स्टूडेंट्स ने बड़े स्वरों में उनकी हंसी भी उड़ाई थी। आज शिवानी को उस दिन को सोचकर मन ही मन बहुत ग्लानि हो रही थी… लेकिन साथ ही कोमल मैम के बारे में जानकर एक आत्मिक खुशी और गर्व सा महसूस हो रहा था।
और होता भी क्यूं ना…. भले ही कोमल अपने पति से दस साल छोटी रही हो, लेकिन उसके पति ने उसके जीवन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
समाप्त…..