कविता शीर्षक – कविता भटक रही है…
जिन्दगी की खोज में
भटक रही है कविता ,
दुखों के काँटों में अटक
कर रह गई है कविता ,
पीर के पहाड़ों पर चढ
चढ थक गई कविता
जानती है वह ,अभी हवाऐं
गमगीन है ,
मोहब्बत के सुहाने तराने
ठीक नहीं
पर ?
कलकल बहता झरना है
वह,
गतिमान प्राणदायी पवन है
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वह,
कहती है –
मन में बहता है
उम्मीदों का दरिया ,
उसमें तो बहने दो ,
आशा और विश्वास की
किरण बनने दो ,
चाहती है वह-
उसके शब्द-स्वर
करूण उर की सीपी पर
स्वाति जल से बरसे ,
मणि कणिका सी बन
निराश मन पर चमके
कहती है कवि से-
आस्था के विशालआकाश
में कवि ,
इन्द्रधनुष सा तान दो मुझे ,
सुख की नन्हीं चिरैया बना ,
वहीं कहीं उड़ा दो ,