शीर्षक – (हम तेरे शहर के होते तो ठहर के देखते)
हम तेरे शहर के होते तो ठहर के देखते
चंद पल की भेंट सही जी भरकर देखते
हमें राब्ता है तुम्हारी गलियाँ से जानाँ
कोई बहाना मिले जरूर गुजरकर देखते
सुना है तुम्हें भी इंतजार रहता है हमारा
ये बात है तो किसी शाम मिलकर देखते
सुना है वो हमें सोच कर सवँरती है।
ये बात है तो हम माथा चूमकर देखते
सुना है उसे गुलाब बहुत पसंद है
हम उसकी ज़ुल्फों का गुलाब सजकर देखते
सुना है उसे रातों को नींद नही आती
ये बात है तो सर गोद में सुलाकर देखते
सुना है उसकी आँखें तलाशती हैं हमें
ये बात है तो उसका साया बनकर देखते
सुना है बड़ी बेक़रारी हमसे बात करने की
हम उसकी बातें चाँद चकोर बनकर सुनते
कुछ देर और ठहरते तो अच्छा था जानाँ
हम भी जिंदगी के सुहाने सफर चलकर देखते
~ नरेश सोगरवाल
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शीर्षक – (बेगानों की मैफ़िल में एक शाम गुजारी जाए)
बेगानों की मैफ़िल में एक शाम गुजारी जाए ।
चलो मरु तर के साथ एक शाम गुजारी जाए ।
जिंदा लोगों के साथ तो बहुत हैं लोग जहाँ में
चलो कब्र के साथ एक शाम गुजारी जाए
चमकीली साडियों में बहुत खोई है दुनिया
चलो क़फ़न के साथ एक शाम गुजारी जाए
पैसों वालों से यारी बहुत रखते हैं लोग
चलो ग़रीब के साथ एक शाम गुजारी जाए ,
समा बाहरों की गुलशनों के दीवाने बहुत हैं भौरें
चलो मरु के कीटों के साथ एक शाम गुजारी जाए
बहुत मश्गूल हैं मुकम्मल इश्क़ की कहानी में लोग
मैं बेगाना परवाना एक लम्हें की शाम गुजारी जाए ,
~ नरेश सोगरवाल
बहुत बहुत शुक्रिया ❤️🙏