कविता शीर्षक – वो बहन है मेरी
है दोस्त कभी,
कभी मां जैसी….
जिस रूप में चाहो
बन जाती…
कभी खेले संग,
कभी लड़ती भी…
संगिनी तुरंत फिर
बन जाती…
है साथी सुख दुख की
सच्ची….
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किस्मत से सबको
मिलती है…
वो बहन है मेरी
मां जैसी
हां… डांट भी मुझको
देती है….
वो बहन है मेरी
मां जैसी
हां… साथ मेरा वो देती है…
वो बहन है मेरी
मां जैसी
हर कमी को पूरा करती है…
वो बहन है मेरी….