Raghav Writing Solutions Poetry Raghav Writing Solutions 2023 : पढ़िए…..राष्ट्रीय कवि “डॉ हरिओम पंवार” द्वारा लिखित कविता “काला धन….!”

Raghav Writing Solutions 2023 : पढ़िए…..राष्ट्रीय कवि “डॉ हरिओम पंवार” द्वारा लिखित कविता “काला धन….!”


Raghav Writing Solutions : पढ़िए.....राष्ट्रीय कवि "डॉ हरिओम पंवार" द्वारा लिखित कविता "काला धन....!" Dr Raghav Chauhan

Raghav Writing Solutions : कविता शीर्षक – काला धन

मै अदना सा कलमकार हूँ घायल मन की आशा का

Raghav Writing Solutions : Eminent Developer

मुझको कोई ज्ञान नहीं है छंदों की परिभाषा का

जो यथार्थ में दीख रहा है मैं उसको लिख देता हूँ

कोई निर्धन चीख रहा है मैं उसको लिख देता हूँ

मैंने भूखों को रातों में तारे गिनते देखा है

भूखे बच्चों को कचरे में खाना चुनते देखा है

मेरा वंश निराला का है स्वाभिमान से जिन्दा हूँ

निर्धनता और काले धन पर मन ही मन शर्मिंदा हूँ

मैं शबनम चंदन के गीत नहीं गाता

अभिनंदन वंदन के गीत नहीं गाता

दरबारों के सत्य बताता फिरता हूँ

काले धन के तथ्य बताता फिरता हूँ

जहाँ हुकूमत का चाबुक कमजोर दिखाई देता है

काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।

जिनके सर पर राजमुकुट है वो सरताज हमारे हैं,

जो जनता से निर्वाचित हैं नेता आज हमारे हैं,

इसीलिए अब दरबारों से केवल एक निवेदन है,

काले धन का लेखा-जोखा देने का आवेदन है,

क्योंकि भूख गरीबी का एक कारण काला धन भी है,

फुटपाथों पर पली जिंदगी का हारा सा मन भी है,

सिंहासन पर आने वालो अहंकार में मत झूलो,

काले धन के साम्राज्य से आँख मिलाना मत भूलो,

भूख प्यास का आलम देखो जाकर कालाहान्डी में,

माँ बेटी को बेच रही है दिन की एक दिहाड़ी में,

झोपड़ियों की भूख प्यास पर कलमकार तो चीखेगा,

मजदूरों के हक़ की खातिर मुट्ठी ताने दीखेगा,

पूरी संसद काले धन पर मौन साधकर बैठी है,

शुक्र करो के जनता अब तक हाथ बांधकर बैठी है,

झोपड़ियों को सौ-सौ आँसू रोज रुलाना बन्द करो,

सेंसैक्स पर नजरें रखकर देश चलाना बन्द करो,

जिस दिन भूख बगावत वाली सीमा पर आ जाती है

उस दिन भूखी जनता सिंहासन को भी खा जाती है।

मैं झुग्गी झोपड़ पट्टी का चारण हूँ

मैला ढोने वालों का उच्चारण हूँ

आँसू का अग्निगन्धा सम्बोधन हूँ

भूखे मरे किसानों का उद्बोधन हूँ

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संवादों के देवालय को सब्जी मंडी बना दिया

संसद में केवल कोलाहल शोर सुनाई देता है।

आज व्यवस्था का चाबुक कमजोर दिखाई देता है।

काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

काला धन वो धन है जिसका टैक्स बचाया जाता है

अक्सर ये धन सात समन्दर पार छुपाया जाता है

काले धन की अर्थव्यवस्था पूरा देश रुलाती है

झोपड़ पट्टी के बच्चों को खाली पेट सुलाती है

ये निर्धन के हिस्से की इमदादों को खा जाती है

मनरेगा के, अन्त्योदय के वादों को खा जाती है

बॉलीवुड की आधी दुनिया काले धन पर जिंदा है

चुपके-चुपके चोरी-चोरी दो नंबर का धंधा है

जब व्हाइट पैसे से बनती थी तो फिल्में काली थी

नैतिकता की संपोषक थी शुभ संदेशों वाली थी

काले धन की फ़िल्मी दुनिया इन्द्रधनुष रंगों में है,

पर दुनिया में जगह हमारी नंगों-भिखमंगों में है

काले धन के बल पर गुंडे निर्वाचित हो जाते हैं

भोली-भाली भूखी जनता में चर्चित हो जाते हैं

खनन माफिया काले धन के बल पर ऐंठे-ऐंठे हैं

स्विस बैंकों की संदूकों के तालों में जा बैठे हैं।

राजमहल के दर्पण मैले-मैले हैं

नौकरशाही के पंजे जहरीले हैं

शासकीय सुविधा बँट गयी दलालों में

क्या ये ही मिलना था पैंसठ सालों में

सैंतालिस में हम आजाद हुए थे आधी रजनी को

भोर नहीं आई अँधियारा घोर दिखाई देता है।

काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।

हम काले धन वालों का धन-धाम नहीं पा सकते हैं

इनकी भूख हिमालय सी है ये खानें खा सकते हैं

इनके काले तारों से तो नीलाम्बर डर सकता है

इनकी भूख मिटाने में तो सागर भी मर सकता है

अपनी माँ भारत माता से नाता तोड़ चुके हैं ये

मीर जाफरों जयचन्दों को पीछे छोड़ चुके हैं ये।

काले धन का साम्राज्य कानून तोड़ते देखा है

प्रशासनिक व्यवस्था के नाखून तोड़ते देखा है

सचिवालय इनकी सेवा में खड़ा दिखाई देता है

हसन अली भी संविधान से बड़ा दिखाई देता है

इनके बाप विदेशी खातों की सूची में बैठे हैं

ये भारत में गद्दाफी के मार्कोस के बेटे हैं

गॉड पोर्टिकल खोजा है

फ्रॉड पोर्टिकल खोजो

जो काले धन के मालिक हैं उनका आज और कल खोजो

जो काले धन के मालिक हैं नाम बताओ डर क्या है

उनको उनके कर्मों का अंजाम बताओ डर क्या है

उनके नाम छिपाना तो संवैधानिक गद्दारी है

संविधान की रक्षा करना सबकी जिम्मेदारी है

दुनिया भर के आगे हाथ पसारोगे

लेकिन काले धन की जंग नकारोगे

झोली लेकर और घूमना बंद करो

अमरीका के चरण चूमना बन्द करो

भारत को कर्जा मिलता है भारत के काले धन से

पश्चिम की दादागीरी का दौर दिखाई देता है।

काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

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दोनों सत्ता और विपक्षी चुप्पी साधे बैठे हैं

आँखों पर गंधारी जैसी पट्टी बांधे बैठे हैं

इसीलिए अब चौराहों पर सब परदे खोलूँगा मैं

चाहे सूली पर टंग जाऊँ मन का सच बोलूँगा मैं

हो ना हो ये काले धन के खातेदार तुम्हारे हैं

या तो कोष तुम्हारा है या रिश्तेदार तुम्हारे हैं

कलम सत्य की धर्मपीठ है शिवम् सुन्दरम् गाती है

राजा भी अपराधी हो तो सीना ठोक बताती है

इसीलिए दिल्ली की चुप्पी आपराधिक ख़ामोशी है

वित्त मंत्रालय की कुर्सी कालेधन की दोषी है

मंत्रिमण्डल गुरु द्रोण सा पुत्र मोह का दोषी है

जो काले धन का मालिक है देश द्रोह का दोषी है

एफ डी आई लाने की जो कोशिश करती है दिल्ली

भारत को गिरवी रखने की कोशिश करती है दिल्ली

उससे आधी कोशिश अपना धन लाने में कर लेते

भूख गरीबी से लड़ लेते खूब खजाने भर लेते

काला धन वापस आता तो खुशहाली आ सकती थी

धन के सूखे मरुस्थलों में हरियाली आ सकती थी

लाख करोड़ों अपना दुनिया भर में है

लाख करोड़ों काला धन इस घर में है

इससे आधा भी जिस दिन पा जायेंगे

हम दुनिया की महाशक्ति बन जायेंगे

काले धन वाले बैठे हैं सोने के सिंहासन पर

भूखा बचपन उनके चारों ओर दिखाई देता है।

काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

काले धन पर चैनल भी आवाज उठाते नहीं मिले,

कोई स्टिंग ब्लैक मनी का राज दिखाते नहीं मिले

काश! खोजते वो नम्बर जो ब्लैक मनी तालों के हैं,

ऐसा लगता है चैनल भी काले धन वालों के हैं

काले धन पर सत्ता और विपक्षी दोनों गले मिलो

भूखी मानवता की खातिर एक मुक्कमल निर्णय लो

संसद में बस इतना कर दो छोडो सभी बहानों को

राष्ट्र संपदा घोषित कर दो सारे गुप्त खजानों को

काला धन घर में भी है उसकी रफ़्तार मंद कर दो

हज़ार पाँच सौ के नोटों का फ़ौरन चलन बंद कर दो

नकद रूपये में क्रय विक्रय की परम्परा को बंद करो

बिना चेक के लेन देन की परम्परा को बंद करो

किसके लॉकर में क्या है डिक्लेरेसन करवाओ

कितने सोने का मालिक है एफिडेविट भरवाओ

फिर बैंको के एक एक लॉकर को खुलवाकर देखो

किसने कितना सच बोला है सब कुछ तुलवाकर देखो

केवल चौबीस घंटे में कालाधन बाहर आएगा

केवल ये कानून वतन से भ्रष्टाचार मिटवायेगा

जिस दिन भारत की संसद ऐसा कानून बनाएगी।

लोकपाल की कोई जरूरत शेष नहीं रह जायेगी।।

हरिओम पंवार

अस्वीकृति :- उपरोक्त कविता राष्ट्रीय कवि ” हरिओम पंवार” द्वारा लिखित है, जिसके लिए वह पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। किसी भी प्रकार की साहित्यिक चोरी के लिए संस्था एवं पदाधिकारी का कोई दोष नहीं हैं। हमारा प्रिय पाठकों से अनुरोध है कि कृप्या हमें कमेंट करके अवश्य बताएं कि आपको यह रचना कैसी लगी।

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