Raghav Writing Solutions : निबंध शीर्षक – वन्देमातरम
वन्दे मातरम्’ शब्द जिसका सरल सा अर्थ है ‘नमन है माता को’।जन-जन वाकिफ हैं कि इसके रचयिता बंगाली बाबू बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी हैं। इसे आनंदमठ से लिया गया है। इसे हमारे देश का राष्ट्रीय गीत स्वीकारा गया है। अक्सर लोग राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान में अंतर नहीं कर पाते हैं। तो स्पष्ट कर दूं कि राष्ट्रगान हमारा जन गण मन अधिनायक जय हे……….है और राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् है।
बहुत ही सुंदर एवं मधुर अर्थ है इस संस्कृत में रचित गीत का। नमस्कार है स्वच्छ जल देनेवाली को, मीठे फल देनेवाली को, मधुर बयार बहानेवाली को,मधुर भाषाएं बोलनेवाली को….। इस गीत को पढ़ने या सुनने से वाकई मन पुलकित हो जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं है। इस गीत में भारतरूपी भूखंड को एक ममतामयी स्त्री जननी के रूप में देखा गया है। यह कल्पना अपने आप में दिव्य एवं मोहक है।
एक मा अपनी संतानों को पालने के लिए कितना धैर्य रखती है और कितने समझौतों से उसकी देखभाल करती है। जब उसकी सभी संतान अलग-अलग रूप,रंग और स्वभाव के होते हैं। ऐसे में सब पर समभाव रखना एक मा के लिए कितना चुनौतीपूर्ण होता है। हमारी भारत मां के लिए भी भारतवासियों को पालना कुछ ऐसी ही चुनौती है। कई बार देखने को मिला है कि गैर हिंदूओं द्वारा इस गीत को अपनाने से ऐतराज किया गया जो बिल्कुल ही नादानीपूर्ण कार्य है। ऐसा करना बिल्कुल भी समझदारी नहीं है।
अरे ‘वंदे मातरम्’ का विरोध क्यों? सिर्फ इसलिए कि वह संस्कृत में है। संस्कृत क्या सिर्फ एक धर्म की भाषा होनी चाहिए? किसी पाठ्यपुस्तक में पढ़ा है कि संस्कृत में संसार की लगभग सभी भाषाओं से समानता देखने को मिल जाती है। संस्कृत सर्वपुरातन भाषा है,देवभाषा है,धरोहर है। इसे तो संभालकर रखना सभी मानवों का धर्म है। इसे कट्टरता से नहीं जोड़ना चाहिए। कितने महान और शिक्षाप्रद ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। अत: इस भाषा के न जानने से हम कितने ज्ञान और शिक्षा से वंचित रह जाएंगे।
कितनी हास्यास्पद सोच है अगर हम अपनी मा को गुड माॅर्निंग बोल दें तो हम ईसाई तो नहीं बन जाते। फिर वंदे मातरम् में ही ऐसा क्या रखा है? किसी व्यक्ति के लिए बहुभाषाविद् होना उसे निजी फायदा पहुंचा सकता है। हमने अंग्रेजों को तो विदा कर दिया पर अंग्रेजी को विदा करने से हमें नुकसान ही तो दिखा। फिर अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य की गई। अनेक हिंदी के विद्वान एवं भक्त ने अंग्रेजी भाषा में भी विद्वता हासिल की। इससे उनका निजी एवं समाज को भी लाभ हुआ।
संस्कृत क्या कोई भी भाषा तो महज अभिव्यक्ति का माध्यम है। इसे अभिव्यक्ति का माध्यम ही समझा जाए। इसके लिए विवाद ना उठाएं एवं धर्मांध ना बने। कालजयी कवियों की रचनाओं को अपनाएं एवं सम्मान करें,अपनी गोद में पालनेवाली इस मातृभूमि के आगोश में अमन के साथ मिलजुलकर रहें।
वंदे मातरम् का अपमान ना करें। इसका उद्देश्य तो सबका भला करना है और सभी धर्मों का सार भी यहीं है। भारतवासियों को निष्पक्ष होकर रहना चाहिए। अपने इस मधुर राष्ट्रीय गीत को हम पाठ्यपुस्तकों के अंतिम कवर पर भी देख सकते हैं। गर्व की बात है कि इसे भी पहली बार गुरूदेव रवीन्द्र्नाथ जी ने गाया था।
तो देशप्रेमियों! हृदय से बोलो-वंदे मातरम्