कविता शीर्षक – मेरा पैगाम देश के नाम
क्या हमारे ईश्वर, जीजस, अल्लाह और गुरु ने
हमें गलत पाठ पढ़ाया।(नहीं ना)
सभी ने हमको एकता का ही गुण सिखलाया॥
तो फिर क्यों हम हिंदू-मुस्लिम का ढोल बजाते,
अपने धर्म के नामपर क्यों सभी धर्मों के उत्सव हम नहीं मनाते,
हम तो भारत माता के लाल कहलाते,
क्यों हम हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई भाईचारे को भूल जाते॥
क्यों ना हम क्रिसमस ,तुलसी पूजन और
गुरु गोविंद जी के शहजादों का बलिदान दिवस
25 दिसंबर को साथ में मनाते॥
माना हम अपना नव वर्ष चैत में मनाते,
पर क्या हम अपने जीवन में अंग्रेजी कैलेंडर को नहीं अपनाते,
फिर क्यों न्यू ईयर को मनाने में अकड़ दिखाते॥
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अपनी यादों को इन्हीं तारीखों में संजोते,
जन्मदिवस, सालगिरह हर अवसर इन्हीं तारीखों में मनाते,
फिर क्यों अंग्रेजी कैलेंडर के नए वर्ष के आगमन पर
हम दूसरे के बहकावे में आते॥
जब करते आतिशबाजी हम न्यू ईयर पर ,
तो फिर दीपावली पर इसकी रोक क्यों लगाते,
खेलते जब खून की होली, तो फिर होली पर
पानी की रोक क्यों लगाते॥
क्यों ना हम हर रंग में रंग जाते,
क्यों ना हम हर एक पल को रंगीन बनाते,
अपनी जिंदगी को नया आयाम दिलाते,
हर एक क्षण का लाभ उठाते ॥
क्यों नहीं हम अपना दिमाग लगाते,
हर किसी की बातों में आ जाते,
अब ना करेंगे कोई भी ऐसा काम,
जिसमें हो भारत- माता का नाम बदनाम॥
अब ना फैलायेगें ऐसे पैंगाम, जिससे घटे धर्म की शान,
अयोध्या में हो रहा राम-मंदिर का निर्माण ,
लाना है सतयुग-तो करना होगा हमें भी अपना योगदान॥
क्यों ना हम जातिवाद और आरक्षण की बेड़ियां को तोड़कर,
आपस में सुनहरे भारत की कड़ियों को जोड़कर ,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी को एक सूत्र में पिरोकर,
भारत माता की जय- घोष कर ,भारत माता की जय-घोष कर,
अपने स्वर्णिम योग को वापस ले आते,
अपने स्वर्णिम युग को वापस ले आते॥
– संगीता दीपक अग्रवाल (हरदा, म. प्र.)