Raghav Writing Solutions Poetry,Competition पढ़िए…. राष्ट्रीय साहित्य प्रतियोगिता 2022 के प्रतिभागी “शशांक मणि यादव” द्वारा लिखित कविता “ये कहाँ आ गए हम…..”

पढ़िए…. राष्ट्रीय साहित्य प्रतियोगिता 2022 के प्रतिभागी “शशांक मणि यादव” द्वारा लिखित कविता “ये कहाँ आ गए हम…..”


ये कहाँ आ गए हम shashank mani yadav raghav writing solutions

कविता शीर्षक—ये कहाँ आ गए हम

दिल की परिधि से प्रेम नदारद, अपनापन मुरझाया है
पुरवाई के झोंकों में, ईर्ष्या की मिलती छाया है।।
जग का है अस्तित्व ‘सनम’, खतरे में देखो आज हुआ
सभ्य मनुज के गलियारों में, दुष्टों का अब राज हुआ।।
सत्य के नभ में आज झूठ का, मेघ मुदित, हर्षाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

Raghav Writing Solutions : Eminent Developer

प्रेम से रहने वाला मानव, नफरत के आँगन खेले
लालच में पड़कर सोचे अब, किसका पाए, किसका ले-ले।।
नीति, धर्म, नैतिकता के, नीरज की डाली टूट गई
धर्म के ठेकेदारों से ही, धर्म की मटकी फूट गई।।
सिसक रहा है धर्म आज, इस पर ही संकट आया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

चारों तरफ है भय का आलम, अन्यायी पुरजोर हुआ
न्याय की खातिर लड़ने वाला, यारों साबित चोर हुआ।।
रक्षा का दायित्व मिला, जिसे वही दरोगा जुर्म करे
दोषी के संग हाथ मिलाकर, सारे वही कु-कर्म करे।।
बिकती आज यहाँ है वर्दी, मंत्री ने दाम लगाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

Read More : पढ़िए…. राष्ट्रीय साहित्य प्रतियोगिता 2022 के प्रतिभागी “सुशील कुमार पाण्डेय” द्वारा लिखित कविता “नारी का महत्व…..”

घर-घर देखो सभी खड़े हैं, नफरत का औजार लिए
दौलत की खातिर भाई ने, अपने भाई मार दिए।।
पाल-पोसकर जिसने पाला, वही बाप असहाय खड़ा
घर बनवाया जिसने देखो, वही आज बेघर है पड़ा।।
ईश्वर-रूपी मात-पिता पर, पड़ी दुखों की छाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

आज किताबें सजी हुई हैं, हर घर की आलमारी में
लेकिन शायद ज्ञान की बातें, नहीं जेहन की क्यारी में।।
ज्ञान का मंदिर विद्यालय अब, केवल एक व्यापार बना
जाति के कारण जल पीने से, गुरु, शिष्य का काल बना।।
फीस के नाम पर केवल अब, पैसा लेना ही भाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

घर की लक्ष्मी आज बेटियों, की इज्जत अब घायल है
कभी द्रौपदी, आज निर्भया, की लुटती अब पायल है।।
नामर्दों की टोली ने है, एक प्रियंका जला दिया
धन की खातिर पढ़े-लिखों ने, बहू को जिंदा सुला दिया।।
न जाने कितनों की अब, तेजाब से पीड़ित काया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

राजनीति के पासे अब, पूरे समाज के खलनायक
दंगों के संरक्षक ये, लेकिन कहलाते हैं नायक।।
सत्ता की खातिर लोगों को, आपस में ये लड़वाते
उनकी लाशों पर चढ़कर, अपनी कुर्सी पर चढ़ जाते।।
भ्रष्टाचारी नेताओं ने, देश लूट अब खाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

गली-गली, चौराहों पर, नैतिकता दम है छोड़ रही
प्रेमी के संग भाग के बिटिया, बाप का गौरव तोड़ रही।।
कुल-दीपक, दीपक भी देखो, बहन बेटियाँ लूट रहा
व्यसनों में पड़कर देखो, एकलौता बेटा टूट रहा।।
फैशन की आँधी ने जाने, कैसा जहर पिलाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

न जाने ये दौर है कैसा, सब कुछ पैसा ही लगता
अस्पताल में बिन पैसों के, है गरीब घुट-घुट मरता।।
कोई दो रोटी पाने को, अपना तन है सेंक रहा
कोई महज दिखावे में, कूड़े में भोजन फेंक रहा।।
ऊँचे-ऊँचे भवन बने, कोई फुटपाथ ही पाया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

न जाने, कब, क्या हो जाए, अब तो डर सा लगता है
मानव से ज्यादा मुझको अब, दानव का भ्रम लगता है।।
उत्तम प्राणी जो मानव था, कर्म से कितना नीच हुआ
रोटी, कपड़ा, घर की खातिर, अब पूरा मारीच हुआ।।
क्या होगा मानव जाति का, प्रश्न ने मुझे डराया है
मानव-मानव शत्रु बने, मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

अब भी समय हे ! मानव, ये खून-खराबा बंद करो
प्रेम, प्रीत, अनुराग, नेह का, भू पर फिर से सृजन करो।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, मिलकर फिर त्यौहार सजाएँ
होली, ईद और वैशाखी, मिलकर सारे जश्न मनाएँ।।
जन्नत होगी फिर भू पर, जिसको ईश्वर ने बसाया है

मानव-मानव मित्र बनो, मानवता-तरु हर्षाया है।।
मानव-मानव मित्र बनो, मानवता-तरु हर्षाया है।।

शशांक मणि यादव

Disclaimer : उपरोक्त कविता लेखक “शशांक मणि यादव” द्वारा लिखी गई है, जिसके लिए वह पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं। हमें आशा है कि आपको यह कविता पसंद आएगी। कृपया हमें कमेंट करके अवश्य बताएं कि आपको यह कविता कैसी लगी….!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *